गुरु नानकदेव के पद - Guru Nanakdev Ke Pad
झूठी देखी प्रीत
जगत में झूठी देखी प्रीत।
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥
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को काहू को भाई
हरि बिनु तेरो को न सहाई।
काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥
धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई।
तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥

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Sunday, June 13, 2010
संत दादू के पद
संत दादू के पद - Sant Dadu Ke Pad
पूजे पाहन पानी
दादू दुनिया दीवानी, पूजे पाहन पानी।
गढ़ मूरत मंदिर में थापी, निव निव करत सलामी।
चन्दन फूल अछत सिव ऊपर बकरा भेट भवानी।
छप्पन भोग लगे ठाकुर को पावत चेतन न प्रानी।
धाय-धाय तीरथ को ध्यावे, साध संग नहिं मानी।
ताते पड़े करम बस फन्दे भरमें चारों खानी।
बिन सत्संग सार नहिं पावै फिर-फिर भरम भुलानी।
रूप रंग से न्यारा
दादू देखा मैं प्यारा, अगम जो पंथ निहारा।
अष्ट कँवल दल सुरत सबद में, रूप रंग से न्यारा।
पिण्ड ब्रह्माण्ड और वेद कितेवे, पाँच तत्त के पारा।
सत्त लोक जहँ पुरु बिदेही वह साहिब करतारा।
आदि जोत और काल निरंजन, इनका कहाँ न पसारा।
राम रहीम रब्ब नहीं आतम, मोहम्मद नहीं औतारा।
सब संतन के चरन सीस धर चीन्हा सार असारा।
पूजे पाहन पानी
दादू दुनिया दीवानी, पूजे पाहन पानी।
गढ़ मूरत मंदिर में थापी, निव निव करत सलामी।
चन्दन फूल अछत सिव ऊपर बकरा भेट भवानी।
छप्पन भोग लगे ठाकुर को पावत चेतन न प्रानी।
धाय-धाय तीरथ को ध्यावे, साध संग नहिं मानी।
ताते पड़े करम बस फन्दे भरमें चारों खानी।
बिन सत्संग सार नहिं पावै फिर-फिर भरम भुलानी।
रूप रंग से न्यारा
दादू देखा मैं प्यारा, अगम जो पंथ निहारा।
अष्ट कँवल दल सुरत सबद में, रूप रंग से न्यारा।
पिण्ड ब्रह्माण्ड और वेद कितेवे, पाँच तत्त के पारा।
सत्त लोक जहँ पुरु बिदेही वह साहिब करतारा।
आदि जोत और काल निरंजन, इनका कहाँ न पसारा।
राम रहीम रब्ब नहीं आतम, मोहम्मद नहीं औतारा।
सब संतन के चरन सीस धर चीन्हा सार असारा।
अकबर-बीरबल के किस्से
बीरबल की पैनी दृष्टि :: अकबर-बीरबल के किस्से
बीरबल बहुत नेक दिल इंसान थे। वह सैदव दान करते रहते थे और इतना ही नहीं, बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी ज्यादातर गरीबों और दीन-दुःखियों में बांट देते थे, परन्तु इसके बावजूद भी उनके पास धन की कोई कमी न थी। दान देने के साथ-साथ बीरबल इस बात से भी चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति उन्हें अपनी दीनता दिखाकर ठग न लें।
ऐसे ही अकबर बादशाह ने दरबारियों के साथ मिलकर एक योजना बनाई कि देखें कि सच्चे दीन दुःखियों की पहचान बीरबल को हो पाती है या नही। बादशाह ने अपने एक सैनिक को वेश बदलवाकर दीन-हीन अवस्था में बीरबल के पास भेजा कि अगर वह आर्थिक सहायता के रूप में बीरबल से कुछ ले आएगा, तो अकबर की ओर से उसे इनाम मिलेगा।
एक दिन जब बीरबल पूजा-पाठ करके मंदिर से आ रहे थे तो भेष बदले हुए सैनिक ने बीरबल के सामने आकर कहा, “हुजूर दीवान! मैं और मेरे आठ छोटे बच्चे हैं, जो आठ दिनों से भूखे हैं....भगवान का कहना है कि भूखों को खाना खिलाना बहुत पुण्य का कार्य है, मुझे आशा है कि आप मुझे कुछ दान देकर अवश्य ही पुण्य कमाएंगे।”
बीरबल ने उस आदमी को सिर से पांव तक देखा और एक क्षण में ही पहचान लिया कि वह ऐसा नहीं है, जैसा वह दिखावा कर रहा है।
बीरबल मन ही मन मुस्कराए और बिना कुछ बोले ही उस रास्ते पर चल पडे़ जहां से होकर एक नदी पार करनी पड़ती थी। वह व्यक्ति भी बीरबल के पीछे-पीछे चलता रहा। बीरबल ने नदी पार करने के लिए जूती उतारकर हाथ में ले ली। उस व्यक्ति ने भी अपने पैर की फटी पुरानी जूती हाथ में लेने का प्रयास किया।
बीरबल नदी पार कर कंकरीले मार्ग आते ही दो-चार कदम चलने के बाद ही जूती पहन लेता। बीरबल यह बात भी गौर कर चुके थे कि नदी पार करते समय उसका पैर धुलने के कारण वह व्यक्ति और भी साफ-सुथरा, चिकना, मुलायम गोरी चमड़ी का दिखने लगा था इसलिए वह मुलायम पैरों से कंकरीले मार्ग पर नहीं चल सकता था।
“दीवानजी! दीन ट्टहीन की पुकार आपने सुनी नहीं?” पीछे आ रहे व्यक्ति ने कहा।
बीरबल बोले, “जो मुझे पापी बनाए मैं उसकी पुकार कैसे सुन सकता हूँ? ”
“क्या कहा? क्या आप मेरी सहायता करके पापी बन जांएगे?”
“हां, वह इसलिए कि शास्त्रों में लिखा है कि बच्चे का जन्म होने से पहले ही भगवान उसके भोजन का प्रबन्ध करते हुए उसकी मां के स्तनों में दूध दे देता है, उसके लिए भोजन की व्यव्स्था भी कर देता है। यह भी कहा जाता है कि भगवान इन्सान को भूखा उठाता है पर भूखा सुलाता नहीं है। इन सब बातों के बाद भी तुम अपने आप को आठ दिन से भूखा कह रहे हो। इन सब स्थितियों को देखते हुए यहीं समझना चाहिये कि भगवान तुमसे रूष्ट हैं और वह तुम्हें और तुम्हारे परिवार को भूखा रखना चाहते हैं लेकिन मैं उसका सेवक हूँ, अगर मैं तुम्हारा पेट भर दूं तो ईश्वर मुझ पर रूष्ट होगा ही। मैं ईश्वर के विरूध्द नहीं जा सकता, न बाबा ना! मैं तुम्हें भोजन नहीं करा सकता, क्योंकि यह सब कोई पापी ही कर सकता है।”
बीरबल का यह जबाब सुनकर वह चला गया।
उसने इस बात की बादशाह और दरबारियों को सूचना दी।
बादशाह अब यह समझ गए कि बीरबल ने उसकी चालाकी पकड़ ली है।
अगले दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा, “बीरबल तुम्हारे धर्म-कर्म की बड़ी चर्चा है पर तुमने कल एक भूखे को निराश ही लौटा दिया, क्यों?”
“आलमपनाह! मैंने किसी भूखे को नहीं, बल्कि एक ढोंगी को लौटा दिया था और मैं यह बात भी जान गया हूँ कि वह ढोंगी आपके कहने पर मुझे बेवकूफ बनाने आया था।”
अकबर ने कहा, “बीरबल! तुमनें कैसे जाना कि यह वाकई भूखा न होकर, ढोंगी है?”
“उसके पैरों और पैरों की चप्पल देखकर। यह सच है कि उसने अच्छा भेष बनाया था, मगर उसके पैरों की चप्पल कीमती थी।”
बीरबल ने आगे कहा, “माना कि चप्पल उसे भीख में मिल सकती थी, पर उसके कोमल, मुलायम पैर तो भीख में नहीं मिले थे, इसलिए कंकड क़ी गड़न सहन न कर सके।”
इतना कहकर बीरबल ने बताया कि किस प्रकार उसने उस मनुष्य की परीक्षा लेकर जान लिया कि उसे नंगे पैर चलने की भी आदत नहीं, वह दरिद्र नहीं बल्कि किसी अच्छे कुल का खाता कमाता पुरूष है।”
बादशाह बोले, “क्यों न हो, वह मेरा खास सैनिक है।” फिर बहुत प्रसन्न होकर बोले, “सचमुच बीरबल! माबदौलत तुमसे बहुत खुश हुए! तुम्हें धोखा देना आसान काम नहीं है।”
बादशाह के साथ साजिश में शामिल हुए सभी दरबारियों के चेहरे बुझ गए।
बीरबल बहुत नेक दिल इंसान थे। वह सैदव दान करते रहते थे और इतना ही नहीं, बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी ज्यादातर गरीबों और दीन-दुःखियों में बांट देते थे, परन्तु इसके बावजूद भी उनके पास धन की कोई कमी न थी। दान देने के साथ-साथ बीरबल इस बात से भी चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति उन्हें अपनी दीनता दिखाकर ठग न लें।
ऐसे ही अकबर बादशाह ने दरबारियों के साथ मिलकर एक योजना बनाई कि देखें कि सच्चे दीन दुःखियों की पहचान बीरबल को हो पाती है या नही। बादशाह ने अपने एक सैनिक को वेश बदलवाकर दीन-हीन अवस्था में बीरबल के पास भेजा कि अगर वह आर्थिक सहायता के रूप में बीरबल से कुछ ले आएगा, तो अकबर की ओर से उसे इनाम मिलेगा।
एक दिन जब बीरबल पूजा-पाठ करके मंदिर से आ रहे थे तो भेष बदले हुए सैनिक ने बीरबल के सामने आकर कहा, “हुजूर दीवान! मैं और मेरे आठ छोटे बच्चे हैं, जो आठ दिनों से भूखे हैं....भगवान का कहना है कि भूखों को खाना खिलाना बहुत पुण्य का कार्य है, मुझे आशा है कि आप मुझे कुछ दान देकर अवश्य ही पुण्य कमाएंगे।”
बीरबल ने उस आदमी को सिर से पांव तक देखा और एक क्षण में ही पहचान लिया कि वह ऐसा नहीं है, जैसा वह दिखावा कर रहा है।
बीरबल मन ही मन मुस्कराए और बिना कुछ बोले ही उस रास्ते पर चल पडे़ जहां से होकर एक नदी पार करनी पड़ती थी। वह व्यक्ति भी बीरबल के पीछे-पीछे चलता रहा। बीरबल ने नदी पार करने के लिए जूती उतारकर हाथ में ले ली। उस व्यक्ति ने भी अपने पैर की फटी पुरानी जूती हाथ में लेने का प्रयास किया।
बीरबल नदी पार कर कंकरीले मार्ग आते ही दो-चार कदम चलने के बाद ही जूती पहन लेता। बीरबल यह बात भी गौर कर चुके थे कि नदी पार करते समय उसका पैर धुलने के कारण वह व्यक्ति और भी साफ-सुथरा, चिकना, मुलायम गोरी चमड़ी का दिखने लगा था इसलिए वह मुलायम पैरों से कंकरीले मार्ग पर नहीं चल सकता था।
“दीवानजी! दीन ट्टहीन की पुकार आपने सुनी नहीं?” पीछे आ रहे व्यक्ति ने कहा।
बीरबल बोले, “जो मुझे पापी बनाए मैं उसकी पुकार कैसे सुन सकता हूँ? ”
“क्या कहा? क्या आप मेरी सहायता करके पापी बन जांएगे?”
“हां, वह इसलिए कि शास्त्रों में लिखा है कि बच्चे का जन्म होने से पहले ही भगवान उसके भोजन का प्रबन्ध करते हुए उसकी मां के स्तनों में दूध दे देता है, उसके लिए भोजन की व्यव्स्था भी कर देता है। यह भी कहा जाता है कि भगवान इन्सान को भूखा उठाता है पर भूखा सुलाता नहीं है। इन सब बातों के बाद भी तुम अपने आप को आठ दिन से भूखा कह रहे हो। इन सब स्थितियों को देखते हुए यहीं समझना चाहिये कि भगवान तुमसे रूष्ट हैं और वह तुम्हें और तुम्हारे परिवार को भूखा रखना चाहते हैं लेकिन मैं उसका सेवक हूँ, अगर मैं तुम्हारा पेट भर दूं तो ईश्वर मुझ पर रूष्ट होगा ही। मैं ईश्वर के विरूध्द नहीं जा सकता, न बाबा ना! मैं तुम्हें भोजन नहीं करा सकता, क्योंकि यह सब कोई पापी ही कर सकता है।”
बीरबल का यह जबाब सुनकर वह चला गया।
उसने इस बात की बादशाह और दरबारियों को सूचना दी।
बादशाह अब यह समझ गए कि बीरबल ने उसकी चालाकी पकड़ ली है।
अगले दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा, “बीरबल तुम्हारे धर्म-कर्म की बड़ी चर्चा है पर तुमने कल एक भूखे को निराश ही लौटा दिया, क्यों?”
“आलमपनाह! मैंने किसी भूखे को नहीं, बल्कि एक ढोंगी को लौटा दिया था और मैं यह बात भी जान गया हूँ कि वह ढोंगी आपके कहने पर मुझे बेवकूफ बनाने आया था।”
अकबर ने कहा, “बीरबल! तुमनें कैसे जाना कि यह वाकई भूखा न होकर, ढोंगी है?”
“उसके पैरों और पैरों की चप्पल देखकर। यह सच है कि उसने अच्छा भेष बनाया था, मगर उसके पैरों की चप्पल कीमती थी।”
बीरबल ने आगे कहा, “माना कि चप्पल उसे भीख में मिल सकती थी, पर उसके कोमल, मुलायम पैर तो भीख में नहीं मिले थे, इसलिए कंकड क़ी गड़न सहन न कर सके।”
इतना कहकर बीरबल ने बताया कि किस प्रकार उसने उस मनुष्य की परीक्षा लेकर जान लिया कि उसे नंगे पैर चलने की भी आदत नहीं, वह दरिद्र नहीं बल्कि किसी अच्छे कुल का खाता कमाता पुरूष है।”
बादशाह बोले, “क्यों न हो, वह मेरा खास सैनिक है।” फिर बहुत प्रसन्न होकर बोले, “सचमुच बीरबल! माबदौलत तुमसे बहुत खुश हुए! तुम्हें धोखा देना आसान काम नहीं है।”
बादशाह के साथ साजिश में शामिल हुए सभी दरबारियों के चेहरे बुझ गए।
रहीम के दोहे
रहीम के दोहे - Raheem Ke Dohe
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥
गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया।
जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥
छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥
जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नांहि॥
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥
गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया।
जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥
छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥
जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नांहि॥
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
कबीर के दोहे -
कबीर के दोहे - Kabir Ke Dohe
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥
Thursday, May 20, 2010
खलील जिब्रान
Famous Quotes By Kahlil Gibran
... joy and sorrow are inseparable. . . together they come and when one sits alone with you . . . remember that the other is asleep upon your bed.
Kahlil Gibran -
A friend who is far away is sometimes much nearer than one who is at hand. Is not the mountain far more awe-inspiring and more clearly visible to one passing through the valley than to those who inhabit the mountain?
Kahlil Gibran-
A poet is a bird of unearthly excellence, who escapes from his celestial realm arrives in this world warbling. If we do not cherish him, he spreads his wings and flies back into his homeland.
Kahlil Gibran-
Beauty is eternity gazing at itself in a mirror.
Kahlil Gibran -
Birth and Death are the two noblest expressions of bravery
Kahlil Gibran -
But let there be spaces in your togetherness and let the winds of the heavens dance between you. Love one another but make not a bond of love: let it rather be a moving sea between the shores of your souls.
Kahlil Gibran
Desire is half of life; indifference is half of death.
Kahlil Gibran
Generosity is giving more than you can, and pride is taking less than you need.
Kahlil Gibran
I existed from all eternity and, behold, I am here; and I shall exist till the end of time, for my being has no end.
Kahlil Gibran
I have learned silence from the talkative, toleration from the intolerant, and kindness from the unkind; yet, strange, I am ungrateful to those teachers.
Kahlil Gibran
I love you when you bow in your mosque, kneel in your temple, pray in your church. For you and I are sons of one religion, and it is the spirit.
Kahlil Gibran
I prefer to be a dreamer among the humblest, with visions to be realized, than lord among those without dreams and desires.
Kahlil Gibran
In the sweetness of friendship let there be laughter, and sharing of pleasures. For in the dew of little things the heart finds its morning and is refreshed.
Kahlil Gibran
Knowledge of the self is the mother of all knowledge. So it is incumbent on me to know my self, to know it completely, to know its minutiae, its characteristics, its subtleties, and its very atoms.
Kahlil Gibran
Life without love is like a tree without blossoms or fruit.
Kahlil Gibran
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Love and doubt have never been on speaking terms.
Kahlil Gibran
Pain and foolishness lead to great bliss and complete knowledge, for Eternal Wisdom created nothing under the sun in vain.
Kahlil Gibran
The person you consider ignorant and insignificant is the one who came from God, that he might learn bliss from grief and knowledge from gloom.
Kahlil Gibran
The timeless in you is aware of life's timelessness; and knows that yesterday is but today's memory and tomorrow is today's dream.
Kahlil Gibran
There is a desire deep within the soul which drives man from the seen to the unseen, to philosophy and to the divine.
Kahlil Gibran
To understand the heart and mind of a person, look not at what he has already achieved, but at what he aspires to.
Kahlil Gibran
When you are joyous, look deep into your heart and you shall find it is only that which has given you sorrow that is giving you joy. When you are sorrowful look again in your heart, and you shall see that in truth you are weeping for that which has been your delight.
Kahlil Gibran
When you work you fulfill a part of earth's furthest dream, assigned to you when that dream was born. And in keeping yourself with labor you are in truth loving life, And to love life through labor is to be intimate with life's inmost secret.
Kahlil Gibran
Where can I find a man governed by reason instead of habits and urges?
Kahlil Gibran
Yesterday is but today's memory, and tomorrow is today's dream.
Kahlil Gibran
Your children are not your children. / They are the sons and daughters of Life's longing for itself.
Kahlil Gibran
Your living is determined not so much by what life brings to you as by the attitude you bring to life; not so much by what happens to you as by the way your mind looks at what happens.
... joy and sorrow are inseparable. . . together they come and when one sits alone with you . . . remember that the other is asleep upon your bed.
Kahlil Gibran -
A friend who is far away is sometimes much nearer than one who is at hand. Is not the mountain far more awe-inspiring and more clearly visible to one passing through the valley than to those who inhabit the mountain?
Kahlil Gibran-
A poet is a bird of unearthly excellence, who escapes from his celestial realm arrives in this world warbling. If we do not cherish him, he spreads his wings and flies back into his homeland.
Kahlil Gibran-
Beauty is eternity gazing at itself in a mirror.
Kahlil Gibran -
Birth and Death are the two noblest expressions of bravery
Kahlil Gibran -
But let there be spaces in your togetherness and let the winds of the heavens dance between you. Love one another but make not a bond of love: let it rather be a moving sea between the shores of your souls.
Kahlil Gibran
Desire is half of life; indifference is half of death.
Kahlil Gibran
Generosity is giving more than you can, and pride is taking less than you need.
Kahlil Gibran
I existed from all eternity and, behold, I am here; and I shall exist till the end of time, for my being has no end.
Kahlil Gibran
I have learned silence from the talkative, toleration from the intolerant, and kindness from the unkind; yet, strange, I am ungrateful to those teachers.
Kahlil Gibran
I love you when you bow in your mosque, kneel in your temple, pray in your church. For you and I are sons of one religion, and it is the spirit.
Kahlil Gibran
I prefer to be a dreamer among the humblest, with visions to be realized, than lord among those without dreams and desires.
Kahlil Gibran
In the sweetness of friendship let there be laughter, and sharing of pleasures. For in the dew of little things the heart finds its morning and is refreshed.
Kahlil Gibran
Knowledge of the self is the mother of all knowledge. So it is incumbent on me to know my self, to know it completely, to know its minutiae, its characteristics, its subtleties, and its very atoms.
Kahlil Gibran
Life without love is like a tree without blossoms or fruit.
Kahlil Gibran
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Love and doubt have never been on speaking terms.
Kahlil Gibran
Pain and foolishness lead to great bliss and complete knowledge, for Eternal Wisdom created nothing under the sun in vain.
Kahlil Gibran
The person you consider ignorant and insignificant is the one who came from God, that he might learn bliss from grief and knowledge from gloom.
Kahlil Gibran
The timeless in you is aware of life's timelessness; and knows that yesterday is but today's memory and tomorrow is today's dream.
Kahlil Gibran
There is a desire deep within the soul which drives man from the seen to the unseen, to philosophy and to the divine.
Kahlil Gibran
To understand the heart and mind of a person, look not at what he has already achieved, but at what he aspires to.
Kahlil Gibran
When you are joyous, look deep into your heart and you shall find it is only that which has given you sorrow that is giving you joy. When you are sorrowful look again in your heart, and you shall see that in truth you are weeping for that which has been your delight.
Kahlil Gibran
When you work you fulfill a part of earth's furthest dream, assigned to you when that dream was born. And in keeping yourself with labor you are in truth loving life, And to love life through labor is to be intimate with life's inmost secret.
Kahlil Gibran
Where can I find a man governed by reason instead of habits and urges?
Kahlil Gibran
Yesterday is but today's memory, and tomorrow is today's dream.
Kahlil Gibran
Your children are not your children. / They are the sons and daughters of Life's longing for itself.
Kahlil Gibran
Your living is determined not so much by what life brings to you as by the attitude you bring to life; not so much by what happens to you as by the way your mind looks at what happens.
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